Description
महर्षि वाल्मीकि कृत
योग वाशिष्ठ
महारामायण
संपादक
श्री नन्दलाल दशोरा
परमात्मा सृजन की वह ऊर्जा है जिससे प्रतिपल सृजन हो रहा है। एक ही ब्रह्म इस ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियों का अव्यक्त स्वरूप है तथा उसकी अभिव्यक्ति ही यह विश्व-ब्रह्माण्ड है।
जिस प्रकार शान्त महासमुद्र में लहरें उत्पन्न होती हैं उसी प्रकार उस ब्रह्म रूपी महासमुद्र में संकल्प शक्ति के कारण स्पन्दन होता है जिससे उसमें निहित शक्तियाँ घनीभूत होकर आकार धारण करती हैं। इसी से सृष्टि रूपी बुलबुलों का जन्म होता है। इस प्रकार अनन्त प्रकार के अनन्त जगत उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं जैसे कि समुद्र में लहरें ।
सर्वप्रथम यह एक अण्डरूप होकर स्थित हुआ फिर उस अण्ड के फूटने से जगत भासने लगा। इस व्यक्त जगत में भी वह मूलभूत बीज की भांति खोता नहीं बल्कि पूर्ण भाव से जीवन्त रहता है। उस ब्रह्म की एशा शक्ति हो उसकी अभिव्यक्ति का कारण बनती है जिससे वही ‘एक’ बहुरूपों में प्रकट होता है।
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