Description
श्री आद्यशंकराचार्य विरचित
विवेक चूड़ामणि
मूल, अनुवाद एवं व्याख्या
: व्याख्याकार :
श्री नन्द लाल दशोरा
आत्मज्ञान किसी कर्मकाण्ड, मन्त्रजाप, मन्दिर-मस्जिद जाने, प्रवचन सुन लेने मात्र से नहीं हो सकता। उसके लिए विचार ही एकमात्र विधि है जिससे मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप आत्मा को जान सकता है तथा सभी में एक ही आत्मा के दर्शन कर सकता है। व्यक्ति-व्यक्ति की आत्मा की भिन्नता अज्ञान का ही फल है। सर्वत्र एक ही आत्मा के दर्शन करना ही ज्ञान है।
दुःख जीवन का अन्तिम सत्य नहीं है, मिथ्या धारणा मात्र है, जो अज्ञानवश उत्पन्न होती है। ज्ञान की प्राप्ति पर सभी दुःखों का अन्त होकर परमानन्द का बोध होता है क्योंकि आत्मा स्वयं आनन्द स्वरुप है।
आत्मज्ञान की उपलब्धि के लिए यह विवेक चूड़ामणि ग्रन्थ अपने ढंग का अनूठा ग्रन्थ है जिसमें अद्वैत का समस्त सार समाहित है। इसके अध्ययन, मनन एवं इसके अनुसार साधना करने पर मनुष्य को आत्मबोध होकर अद्वैत की उपलब्धि हो सकती है। इस ग्रन्थ में आत्मज्ञान की विधियों का सांगोपांग वर्णन प्रस्तुत किया गया है। वेदान्त की मान्यता का यह सारभूत साधना ग्रन्थ है जिसके अध्ययन से सत-असत् का विवेक जाग्रत होकर सत्यासत्य का निर्णय करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो सकता । आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए यह एकमात्र प्रामाणिक ग्रन्थ है।
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