Description
ईश्वर प्राप्ति की श्रेष्ठ साधना
गीता में सम्पूर्ण योग
लेखक :
नन्दलाल दशोरा
धर्म की साधना में योग की मुख्य भूमिका है। योग का अर्थ है ईश्वर प्राप्ति। जब तक यह न हो तब तक धर्म का कोई औचित्य ही सिद्ध नही होता । मंजिल पर पहुँच जाना ही योग की सिद्धि है। योग की सिद्धि के लिये गीता में दो निष्ठाएँ बताई गयी हैं जिनमें एक है सांख्य अर्थात ज्ञान की विधि तथा दूसरी है कर्म की विधि । ज्ञान-योगी उस परमतत्त्व बह्म को तत्त्व से जानकर योग को प्राप्त होता है। तथा कर्म-योगी योग साधना करके उस ईश्वर को प्राप्त होता है। इन दोनों से भी उत्तम भक्तियोग की विधि है जिसमें ईश्वर के प्रति अपने को समर्पित किया जाता है। इन तीनों को विस्तार देते हुये गीता के अठारह अध्यायों के योग कहे गये हैं जिनकी साधना से व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त हो सकता है।
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