Description
दस गुरु
जीवन चरित्र और उपदेश
सूरज प्रकाश
लेखक:
सुरेश चन्द्र अग्रवाल और ज्ञानी तेजपाल सिंह
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊँचा है क्योंकि गुरु के द्वारा प्रदत्त ज्ञान से ही व्यक्ति पहले सांसारिक और फिर कैवल्य का बोध प्राप्त करता है। भारतवर्ष में गुरु और शिष्य की परम्परा बहुत ही प्राचीन है और लगभग सभी ग्रन्थ गुरु-शिष्य सम्वाद के रूप में सारी मानव जाति को सन्देश देते आ रहे हैं।
प्रथम गुरु नानकदेव से लेकर दसवें गुरु गुरु गोविन्दसिंह तक का काल हिन्दू सभ्यता के उत्पीड़न का काल था। ऐसे में ज्ञान का आलोक बनकर उभरे नानक व उसके बाद सभी गुरुओं ने हिन्दू जाति में नये प्राण फूँके। सभी गुरु हरिभक्ति में लीन परम सन्त थे परन्तु कालान्तर में दसवें गुरु गोविन्दसिंह को अधर्म, अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध खड्ग धारण करने को बाध्य होना पड़ा। उनका चरित्र और वेश भक्त और सन्त के रूप का पूरक रहा। हिन्दू जाति के उत्थान में दस गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा उनके अद्वितीय त्याग व बलिदान
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