Description
प्राचीन भारतीय संस्कृति में वैदिक दिनचर्या का शुभारंभ हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र आदि से होता था ।। तपस्वी ऋषि- मनीषियों से लेकर सद्गृहस्थों, बटुक- ब्रह्मचारियों तक नित्य प्रति प्रात: सायं यज्ञ करके जहाँ संसार के विविध विधि रोगों का निवारण किया करते थे ।। दूसरों को लाभान्वित करने के विचार से उत्तम पदार्थ, घृत, मिष्ठान्न, रोगनिवारक व बलवर्धक वनौषधियों इत्यादि हवन में डालकर अपने भीतर परोपकार की सद्प्रवृत्तियों को जागृत कर संसार में सुख, शांति फैलाते थे, वहीं वैज्ञानिक नियमों के आधार पर स्वयं भी शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते थे ।। दीर्घायुष्यप्राप्ति, रोगनिवारण, स्वास्थ्य संवर्धन, सुसंतति की प्राप्ति, साम्राज्य की प्राप्ति, प्रजा व पशु संवर्धन, शत्रुदमन व युद्ध में विजय, व्यक्तित्व विकास, आध्यात्मिक विकास एवं आत्मोत्कर्ष, प्राणपर्जन्य की अभिवृद्धि व वर्षा, वृष्टि नियंत्रण, जलवायु का शुद्धिकरण, पर्यावरण संशोधन, ऋतुचक्रनियमन, प्रकृति अनुकूलन, पोषक तत्त्वों से परिपूर्ण वृक्ष- वनस्पतियों की अभिवृद्धि आदि सभी कार्य यज्ञों द्वारा सम्पन्न होते थे ।। जिस प्रकार भारतीय तत्वज्ञान का अजस्र स्रोत गायत्री महामंत्र रहा है, उसी प्रकार विज्ञान का उद्गमस्रोत यज्ञ रहा है ।। तब गायत्री महाशक्ति और यज्ञ महाविज्ञान द्वारा मनुष्य की कठिन से कठिन आपत्तियों, आपदाओं, समस्याओं का हल सहज ही कर लिया जाता था तथा अनेक प्रकार की ऋद्धि- सिद्धियों, सुख- सुविधायें हस्तगत करना संभव था ।। ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में इन दोनों की शक्ति और सामर्थ्य और भी महान है ।।
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