Sri Guru Geeta
₹240.00
NAME: | Sri Guru Geeta |
AUTHOR: | श्री नन्दलाल दशोरा (Sri Nandlal Dashora) |
LANGUAGE: | Sanskrit TEXT WITH Hindi TRANSLATION |
EDITION: | 2020 |
PAGES: | 204 |
COVER: | Paperback books |
OTHER DETAILS: | 8.5 INCH X5.5 INCH |
WEIGHT: | 320GM |
Availability: 2 in stock
Product Description
पुस्तक परिचय
भगवान् शिव और पार्वती के सम्वाद रूप में गायी गई यह ‘गुरु गीता’ ज्ञानार्थियों के लिए एक अमूल्य निधि है। ऐसा कथन न पूर्व में किसी ने किया है और न कर ही सकेगा। भगवान् शिव स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं। वे – ही सद्गुरु की महिमा को प्रकट करने के अधिकारी हैं। उनका कथन ही सर्वत्र मान्य है। गुरु की महिमा तो सभी ज्ञानियों ने गायी है किन्तु इस ‘गुरु गीता’ की महिमा अनूठी है। इस गीता में ऐसे सभी गुरुओं का कथन है जिनको ‘सूचक गुरु’, ‘वाचक गुरु’, ‘बोधक गुरु’, ‘निषिद्ध ‘गुरु’, ‘विहित गुरु’, ‘कारणाख्य गुरु’ तथा ‘परम गुरु’ कहा जाता है। इनमें ‘निषिद्ध गुरु’ का तो सर्वथा त्याग कर देना चाहिए तथा अन्य गुरुओं में परम गुरु’ ही श्रेष्ठ है। वही ‘सद्गुरु’ है।
वह सद्गुरु कौन हो सकता है उसकी कैसी महिमा है ? इसका वर्णन इस गुरु गीता में पूर्णता से हुआ है। शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि को भी पूर्ण रूपेण दर्शाया गया है। ऐसे ही गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है तथा वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। उसके सभी धर्म, अधर्म, पाप, पुण्य आदि समाप्त हो जाते हैं तथा केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है। वह गुणातीत व रूपातीत हो जाता है जो उसकी अन्तिम गति है। यही उसका गन्तव्य है जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका सत्-स्वरूप है। जिसे वह प्राप्त कर लेता है।
जो ज्ञानार्थी हैं, जो मुमुसु हैं, जो ब्रह्मानुभूति के इच्छुक हैं, जिनके पूर्व जन्मों के सुसंस्कार उदित होकर अपना फल देने को तत्पर हैं, जो ईश्वर प्राप्ति के योग्य पात्र हैं उन्हें किसी सद्गुरु की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तभी वे संसार के आवागमन से मुक्त हो सकते हैं। इसके लिए यह ‘गुरु गीता’ उनका मार्ग दर्शन करेगी।
Weight | 0.315 kg |
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Dimensions | 21.5 × 14 × 1.5 cm |
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