Description
मैं कौन हूँ
भगवान श्री रमण के उपदेश
यथार्थ में जो अस्तित्वमान है, वह केवल आत्मस्वरुप है. जगत जीव और ईश्वर इसमें मोती में चाँदी के आभास की भाँती कल्पित प्रतीति हैं. ये तीनों एक ही समय प्रकट होकर एकहि समय लुप्त होते हैं. जिस स्थान पर मैं का किंचित मात्र विचार नहीं होता, वहाँ स्वरूप हैं, वही मौन है, स्वरुप स्वमेव जगत हैं, स्वरूप स्वमेव ‘मैं’ है स्वृ स्वमेव ईश्वर है, सब कुछ शिव स्वरुप है.
भगवान श्री रमण
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